Tuesday, 14 January 2025

मैं तय नहीं कर पा रहा हूँ कुछ भी - मेरी कविता

यूँ तो भीड़ में से एक हूँ, बस एक बेचैनी को छोड़कर. लोग कहते हैं कि पागलपन का कीड़ा है मेरे अंदर, जो अनवरत काटता रहता है जो कभी सहज नहीं होने देता. वर्तमान का आनंद लेने के बजाय भविष्य की सोच में रहता है हरदम. अपने अलावा सबकी चिंता में रहता है. रोचक पढ़ने और लिखने का शौक रहा है. ह्रदय से मिश्रित रस का कवि भी हूँ, ये और बात है की बयां करने को शब्द नहीं होते. 

...मजबूरन नौकरीपेशा हूँ. जब जो किया तहेदिल से किया और संभवतः इसी कारणवश देश-दुनिया के कार्यक्षेत्रीय दोस्त सफल भी मानते हैं. कंक्रीट की कंदराओं में अकेलापन और अपनों की याद समेटे कुछ लिख कर बैचैनी की दवा ढूंढता हूँ. खेतिहर ब्राम्हणवादी संयुक्त परिवार से हूँ, सो मिट्टी का सोंधापन भी बचा है अंदर कहीं-न-कहीं. दरभंगा, मिथिला के एक सुन्दर से गाँव में दबी हैं मेरी जड़ें जो बड़े शहरों की रंगीनियों से खुद को मुरझाने से बचाने को प्रयासरत है. 



मेरा नाम प्रवीण कुमार है। एक कविता लिखने का प्रयास है। मुझे स्पष्ट है, मैं कवि नहीं, अशुद्धियाँ अधिक होती हैं। वजह प्राथमिकता की है। कविता नहीं है मेरी प्राथमिकता... आप से भी जबरिया पढ़ने का आग्रह नहीं है। लाजिमी है, आपकी भी अपनी प्राथमिकताएं होंगी। खुद का टूटा फुट लिखा कभी अच्छा लग जाता है, लगा सो डॉक्यूमेंट कर लिया। 

कविता का शीर्षक है  ~मैं तय नहीं कर पा रहा हूँ कुछ भी~

मुझे पता है
कुछ शब्द गहरे जख्मों से अधिक दर्द देते हैं
शायद यही वजह हो कि मैंने ऐसे शब्द कहे
'शायद' इसलिए क्योंकि
"मैं तय नहीं कर पा रहा हूँ कुछ भी" 

 

हाँ, कहा था न मैंने
"मैं प्यार नहीं करता तुमसे"
और तुम ओझल हो गयी
लेकिन तुम ही कहो की
क्या तो सही कहूंगा मैं जब
"मैं तय नहीं कर पा रहा हूँ कुछ भी"

 

तुम्हें पता तो है
मेरे दिल की बातों का दम
जुबां तक आते घुट जाता है
हालाँकि ऐसी कोई तकनीक नहीं
जो मन की किसी दूजे मन को समझा दे
तुम खुद क्यों नहीं समझ जाती कि
"मैं तय नहीं कर पा रहा हूँ कुछ भी"

 

यह कम्युनिकेशन गैप है
जिसका की मतलब
हम दोनों अपने तरफ सोचते रहे
हथियार डालता हूँ मैं अब मगर
डॉक्टर perplexity और insomnia कहते हैं
मगर तुम ही कहो की मर्ज क्या है
जबकि तुम्हें पता तो है कि
"मैं तय नहीं कर पा रहा हूँ कुछ भी"

 

क्या तो कहूं क्या छुपाऊं
ख्याल आया और हाथ दिवाल पर मार लिया
और जूते की नोक पत्थर पर....
कहो की क्या कहूं डॉक्टर को
"मैं तय नहीं कर पा रहा हूँ कुछ भी"

 

जहाँ मिलती थी तुम
असंख्य बार उस जगह को जाकर आया
न पाकर खुद को कोसता, गुस्से में सिगरेट ढूंढता...
और फिर लथपथ होकर बैठ जाता हूँ।
तुम समझती क्यों नहीं आखिर कि
"मैं तय नहीं कर पा रहा हूँ कुछ भी"

 

मुझे पता है
तुम्हें भी मेरी याद आती तो होगी ही
लेकिन मेरे वो अल्फाज
"नहीं मैं तुमसे प्यार नहीं करता"
रोक देते होंगे तुम्हें...
मगर क्या तुम्हें पता नहीं की
"मैं तय नहीं कर पा रहा हूँ कुछ भी"


24 नवंबर 2019, Hongkong से Shenzhen के रास्ते  


1 comment: